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Showing posts from June, 2025

The Girl from the Gali

 Title: A Stranger in My Lines Every evening, I walk down that old lane — Dil Wali Gali. People see broken walls, tea stalls, and traffic. But I see magic. My name is Raghav — just a quiet boy with a notebook full of thoughts.And then one day, she walked past. A girl — simple white scarf, a couple of books, and eyes that held stories untold.She passed me by, not noticing. But I noticed everything.Her silence. Her steps. The way she looked at the sky.And just like that, she became the mystery in my life. I never talked to her. Never even tried.But every time she passed, I returned home and wrote like never before.  "A stranger she may be, but her silence echoes through every word I write." She would walk with the calmness of a song, or stand for a second by the flower shop. Some days she looked tired. Some days she looked like a poem herself. I called her the Story Girl in my mind. My diary filled with her. Poems, pages, sketches — even her shadow got a story. One evening, I w...

दिल वाली गली

 कहानी: दिल वाली गली शीर्षक: एक अनकही पहचान हर शाम मैं उस पुरानी गली में चलता हूँ। लोग कहते हैं ये बस एक आम रास्ता है, लेकिन मेरे लिए ये एक जादुई दुनिया है।मैं राघव, एक अकेला लड़का जो खुद से बातें करता है और हर शाम अपनी डायरी में कुछ न कुछ लिखता है। लेकिन उस दिन कुछ बदला... मैं वहीं, उस मोड़ पर था, जब मैंने उसे पहली बार देखा। वो लड़की – सफेद दुपट्टा, कंधों पर किताबें, और आँखों में कोई भूली सी कहानी।वो हर दिन लगभग एक ही समय उस गली से गुजरती। धीरे-धीरे वो मेरी कल्पनाओं की रेखा बनती गई। मैंने उसका नाम नहीं जाना, न कभी बात की। लेकिन उसके गुजरने के बाद, मेरे हाथ खुद-ब-खुद डायरी की ओर बढ़ते। उसकी हर एक झलक मुझे एक नई कविता दे जाती — "एक अजनबी सी, मगर अपने जैसी, हर शाम मेरे लफ्ज़ों में उतर जाती है।" कभी वो हँसती थी फोन पर, कभी चुपचाप चलते हुए आसमान को देखती।मुझे लगा, जैसे उसके पास भी कोई अनकहा किस्सा है, जैसे मेरे पास। मेरी कहानियाँ, कविताएँ, डायरी — सब उसी के लिए होने लगीं। मैंने उसकी आँखों में बारिश देखी, उसके चलने में संगीत सुना। एक दिन मैंने अपनी कविता की अंतिम पंक्ति लिखी — ...

Secret Diaries

  कहानी का शीर्षक: "गुप्त डायरी के पन्ने" शैली: थ्रिलर, फैंटेसी, रहस्य 1. पहला पन्ना – वो पुराना संदूक मेरे दादाजी की मौत के बाद जब हम उनके पुराने घर को समेट रहे थे, तब अटारी में एक धूल भरा संदूक मिला। लकड़ी का, जंग लगे ताले वाला। किसी को नहीं पता था उसमें क्या है। कुंजी नहीं मिली, तो मैंने उसे जबरन खोला। अंदर एक पुरानी डायरी थी — चमड़े की जिल्द वाली, जिस पर एक अजीब सा चिह्न बना था — किसी भाषा में जिसे मैंने पहले कभी नहीं देखा। मैंने पहला पन्ना खोला: "यह डायरी सिर्फ उस व्यक्ति के लिए है, जो सच जानने की हिम्मत रखता है।" 2. दूसरा पन्ना – समय से बाहर की दुनिया डायरी के पन्नों पर घटनाएं थीं जो भविष्य की लगती थीं… लेकिन तारीखें पुरानी थीं। "13 मई 1999 – एक दरवाज़ा खुला, जो समय की सीमा से परे था। मैं उसमें चला गया… और लौटा नहीं।" "27 दिसंबर 2005 – एक लड़की आई थी, जिसकी आंखों में आग थी। वो इंसान नहीं थी।" मैंने पढ़ना बंद कर दिया। ये सब पागलपन जैसा था… या फिर? 3. तीसरा पन्ना – वो एक अजीब रात डायरी पढ़ने के कुछ ही दिनों बाद, मेरे कमरे में अजीब घटनाएं होन...

Kahaniyon ka safar

मैं अकेली चल पड़ी थी — बिना किसी मंज़िल के, बिना किसी साथी के। हाथ में एक पुरानी डायरी थी, जिसमें न जाने कितनी कहानियाँ बंद थीं। लेकिन इस बार, मैं किसी नई कहानी की तलाश में नहीं थी… मैं बस एक अधूरी कहानी को पूरा करना चाहती थी — अपनी कहानी। शहर पीछे छूट गया था, लोग, शोर और वो सब कुछ जिससे मैं भाग रही थी। एक छोटा स्टेशन आया, मैंने ट्रेन से उतर कर साँस ली — गहरी, थकी हुई, लेकिन सच्ची। कोई मुझे जानता नहीं था, कोई पूछता नहीं था कि मैं कहाँ जा रही हूँ। यही तो चाहिए था मुझे… एक रास्ता जो सिर्फ़ मेरा हो। स्टेशन से निकलते ही कच्चा रास्ता मिला। धूल उड़ रही थी, मगर मन शांत था। चलते-चलते एक पुराना पेड़ दिखा — उसकी छाँव में बैठ कर मैंने डायरी खोली। पन्ने पलटे, कुछ अधूरी कहानियाँ थीं — एक लड़की जो उड़ना चाहती थी, एक लड़का जो हर बार हार कर भी मुस्कराता था, एक माँ जो चुपचाप सब कुछ सहती थी। मुझे नहीं पता था मैं क्यों उन कहानियों को छोड़ कर चली आई थी। शायद क्योंकि मेरी खुद की कहानी इतनी उलझी थी कि दूसरों की कहानियाँ बोझ लगने लगी थीं। मैंने डायरी में लिखा: > “आज से मैं सिर्फ़ आगे बढ़ूँगी। पीछे कुछ नही...