कहानी: दिल वाली गली
शीर्षक: एक अनकही पहचान
हर शाम मैं उस पुरानी गली में चलता हूँ। लोग कहते हैं ये बस एक आम रास्ता है, लेकिन मेरे लिए ये एक जादुई दुनिया है।मैं राघव, एक अकेला लड़का जो खुद से बातें करता है और हर शाम अपनी डायरी में कुछ न कुछ लिखता है।
लेकिन उस दिन कुछ बदला...
मैं वहीं, उस मोड़ पर था, जब मैंने उसे पहली बार देखा। वो लड़की – सफेद दुपट्टा, कंधों पर किताबें, और आँखों में कोई भूली सी कहानी।वो हर दिन लगभग एक ही समय उस गली से गुजरती। धीरे-धीरे वो मेरी कल्पनाओं की रेखा बनती गई।
मैंने उसका नाम नहीं जाना, न कभी बात की। लेकिन उसके गुजरने के बाद, मेरे हाथ खुद-ब-खुद डायरी की ओर बढ़ते।
उसकी हर एक झलक मुझे एक नई कविता दे जाती —
"एक अजनबी सी, मगर अपने जैसी,
हर शाम मेरे लफ्ज़ों में उतर जाती है।"
कभी वो हँसती थी फोन पर, कभी चुपचाप चलते हुए आसमान को देखती।मुझे लगा, जैसे उसके पास भी कोई अनकहा किस्सा है, जैसे मेरे पास।
मेरी कहानियाँ, कविताएँ, डायरी — सब उसी के लिए होने लगीं।
मैंने उसकी आँखों में बारिश देखी, उसके चलने में संगीत सुना।
एक दिन मैंने अपनी कविता की अंतिम पंक्ति लिखी —
"अगर तू कहानी नहीं बन पाई, तो क्या हुआ... तू मेरा सबसे खूबसूरत ख्वाब बन गई।"
और उसके बाद वो फिर कभी उस गली में नहीं दिखी।
कभी-कभी सोचता हूँ, क्या वो बस मेरी कल्पना थी?
शायद वो एक कहानी की लड़की थी — जो बस गली से गुजरने आई थी, ताकि कोई उसकी खामोशी को कविता बना दे।
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